बुधवार, 11 नवंबर 2009

समाचार के स्त्रोत

समाचार संकलन

समाचार समाचार पत्र के प्राण होते हैं। समाचार पत्रों की आर्थिक स्थिति समाचारों पर ही निर्भर करती है क्योंकि जिन समाचार पत्रों की बाजार में मांग होती है उन्हीं समाचार पत्रों को विज्ञापनदाता अपने विज्ञापन देना पसंद करते हैं। विज्ञापनों का उद्देश्य ही होता है विज्ञापित वस्तु के विक्रय के लिये ग्राहकों का ध्यान खींचना, उन्हें आकर्षित करना, वस्तु के प्रति दिलचस्पी जगाना तथा उसे खरीदने के लिये उत्प्रेरित करना, जो कि एक अच्छे, सफल और लोकप्रिय समाचार पत्र द्वारा ही संभव हो सकता है। इस प्रकार जहां एक ओर समाचार पत्र विज्ञापित वस्तु के प्रचार के लिये महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं, वहीं दूसरी ओर विज्ञापन के प्रकाशन से समाचार पत्रों की भी आर्थिक स्थिति मजबूत होती है। यही कारण है कि समाचार पत्र अपने समाचार पत्रों के लिये सही, सामयिक, भावनात्मक, निष्पक्ष, प्रामाणिक, परिणामदर्शी समाचारों के संकलन के लिये प्रयासरत रहते हैं और इस कार्य के लिये शिक्षित, अनुभवी, प्रवीणता प्राप्त संवाददाताओं को नियुक्त किया जाता है। जो समाचार समाचार पत्रों के सामर्थ्य से परे होते हैं उनकों, समाचारों का संकलन, प्रेषण व वितरण से जुड़ी, व्यावसायिक समाचार समितियों से एकत्रित किया जाता है।

बीसवीं सदी के अंतिम दशक में हुए सूचना विस्फोट ने समाचार स्त्रोतों का जखीरा ला खड़ा किया है। पुराने प्रचलित स्त्रोतों पर से निर्भरता हटती चली गयी और इंटरनेट के माध्यम से वह सब कुछ कम्प्यूटर स्क्रीन पर प्रस्तुत होने लगा, जिसके लिये संवाददाताओं को लम्बे समय तक चलने वाली कवायद करनी पड़ती थी। इंटरनेट के आगमन के पूर्व समाचार पत्रों के लिये समाचार प्राप्ति के निम्नलिखित ३ स्त्रोत होते थे -

१. ज्ञात स्त्रोत

समाचार प्राप्ति के वे स्त्रोत जिनकी आशा, अपेक्षा, अनुमान पहले से होता है समाचार प्राप्ति के ज्ञात स्त्रोत कहलाते हैं।

पुलिस स्टेशन, ग्राम पालिका, नगर पालिका, अस्पताल, न्यायालय, मंत्रालय, श्मशान, विविध समितियों की बैठकें, सार्वजनिक वक्तव्य, पत्रकार सम्मेलन, सरकारी-गैर सरकारी संस्थाओं के सम्मेलन, सभा-स्थल पर कार्यक्रम आदि समाचार के ज्ञात स्त्रोत हैं।

२. अज्ञात स्त्रोत

समाचारों के वे स्त्रोत जिनकी आशा व अपेक्षा नहीं होती और जहां से समाचार आकस्मिक रूप से प्राप्त होते हैं समाचार प्राप्ति के अज्ञात स्त्रोत कहलाते हैं।

संवाददाता द्वारा सामाजिक चेतना, तर्कशक्ति, ज्ञान, अनुभव और दूरदृष्टि के बल पर एकत्रित किये जाने वाले असंगत, अप्रतीक्षित, आकस्मिक घटनाओं आदि से सम्बंधित समाचार, समाचार प्राप्ति के अज्ञात स्त्रोत हैं।

३. पूर्वानुमानित स्त्रोत

समाचार प्राप्ति के वे स्त्रोत जिनके सम्बंध में पहले से अनुमान लगाया गया हो समाचार के पूर्वानुमानित स्त्रोत कहलाते हैं।

गंदी बस्तियों में फैलने वाली बीमारियों, महामारियों, शिक्षा संस्थानों में होने वाली घपलेबाजियों, कल-कारखानों में मजदूरों द्वारा अपनी मांगों को लेकर होने वाली हड़तालों, तालेबंदियों, निकट भविष्य में होने वाली मूसलाधार बरसातों में धाराशायी होने वाली बहुमंजिली जीर्ण-शीर्ण इमारतों, फसलों व मौसम से सम्बंधित समाचार पूर्वानुमानित होते हैं।

इक्कीसवीं सदी में दिख रहा है सब कुछ संस्कृति के विकसित होने और आम आदमी के बीच साक्षरता बढने के साथ बढी जानने के अधिकार के प्रति जागरुकता ने न केवल संवाददाताओं के मानसिक बोझ को हल्का कर दिया बल्कि वह सब कुछ आसानी से उपलब्ध कराना शुरू कर दिया, जिसके लिये खोजी पत्रकारिता का सहारा लेना शुरू कर दिया गया था।

यह अनायास हुआ नहीं कहा जाएगा कि भ्रष्टाचार के वे मामले भी चुटकियों में प्रकाश में आने लगे, जिसमें प्रधानमंत्री से लेकर अदने से अधिकारी भी लिप्त होते हैं। पूर्व प्रधानमंत्री को कटघरे में ला खड़ा करने और घोटाले का पर्दाफाश होने पर कई मंत्रियों को त्यागपत्र देने की खबरें अब आम हो चुकी हैं। इलेक्ट्रानिक चैनलों के छिपे कैमरे ने वह सब कुछ दिखाना शुरू कर दिया है, जिसकी शिकायत को हवा में उड़ा देने की तरकीवों में लोग माहिर हो चुके थे। ऐसी खबरों का प्रकाशन होने लगा है, जिन्हें कभी राष्ट्रहित में प्रकाशित न करने की दुहाई देकर संवाददाताओं को लाचार कर दिया जाता था। तहलका द्वारा किया गया सेना में भ्रष्टाचारके मामलों का उजागर होना इसी का उदाहरण है।

यह कहना भी गलत नहीं होगा कि इक्कीसवीं सदी में सूचना क्रांति की धमक के साथ प्रवेश करने वाला पाठक या दर्शक इतना अधिक जिज्ञासु हो चुका है कि समय बीतने से पहले वह सब कुछ जान लेना चाहता है, जो उससे जुड़ा है और उसकी रुचि के अनुरूप है। ऐसे में यह जरूरी हो जाता है कि समाचारों के परम्परागत स्त्रोतों और नये उभरते स्त्रोतों के बीच सार्थक समन्वय स्थापित करके वह सब कुछ समाचार के रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास किया जाए, जो डिमांड में है। यहां कुछ समाचार स्त्रोतों की चर्चा की जा रही है।

१. संवाददाता

किसी भी समाचार पत्र या चैनल के लिये सबसे महत्वपूर्ण व कारगर समाचार स्त्रोत उसका संवाददाता होता है। स्वयं द्वारा नियुक्त संवाददाताओं द्वारा संग्रहित जानकारियों पर समाचार पत्र या चैनल को अधिक विश्वास होता है। इसलिये किसी कवरेज पर गये संवाददाता की रिपोर्ट को प्राथमिकता दी जाती है और उस कवरेज से जुड़ी जारी होने वाली विज्ञप्ति को नकार दिया जाता है।

कई बड़े समाचार पत्रों और चैनलों में संवाददाताओं की वैविध्यपूर्ण लम्बी – चौड़ी फौज होती है। समाचारों की विविधता के हिसाब के ही संवाददाताओं को नियुक्त किया जाता है। राजनीतिक दलों के लिये अलग – अलग संवाददाताओं का होना, शिक्षा-संस्कृति, साहित्य, खेल, अर्थ, विज्ञान, फैशन, न्यायालय, सरकारी कार्यालयों, पुलिस और अपराध आदि विषयों व विभागों की खबरों के लिये अलग-अलग संवाददाताओं का होना अब अपरिहार्य सा हो गया है। एक ओर जहां भूमण्डलीकरण और नई बाजार व्यवस्था में स्वयं को फिट करने के लिये प्रमुख देशों के प्रमुख नगरों में संवाददाता रखे जा रहे हैं, वहीं निरंतर बढ रही साक्षरता के चलते समाचारों के बाजार में अपना कब्जा बनाने के लिये छोटे – छोटे गांवों और पिछड़े बाजारों में भी संवाददाता नियुक्त किये जा रहे हैं।

ऐसे में संवाददाताओं की यह जिम्मेदारी हो गयी है कि वे स्वयं को सौंपे गये स्त्रोतों यानी राजीनीतिक दल, स्कूल, कालेज, विश्वविद्यालय, तकनीकी संस्थान, अस्पताल, सरकारी कार्यालयों, न्यायालय, बाजार, पुलिस आदि को खंगालते रहें और लागातार समाचारों को विविधता के साथ प्रस्तुत करते रहें। एक अच्छे अखबार व चैनल में अस्सी प्रतिशत समाचार उसके अपने संवाददाताओं द्वारा खोजे गये, तैयार किये गये और प्रस्तुत किये गये होते हैं।

यहीं यह भी बताते चलें कि समाचारों की गुणवत्ता और महत्व के अनुसार कई स्तर बना दिये गये हैं।

समाचार संकलन की दृष्टि से संवाददाताओं स्तर

समाचार उपलब्ध कराने के लिये समाचार पत्र द्वारा अपने संवाददाता नियुक्त किये जाते हैं, जिन्हें निम्नलिखित ३ श्रेणियों में बांटा जा सकता है -

१. कार्यालय संवाददाता

समाचार पत्र के प्रकाशन स्थान या कार्यालय में ही रहकर स्थानीय समाचारों के संकलन का कार्य कार्यालय संवाददाता करते हैं। ये पूर्णकालिक होते हैं। इनके कार्यक्षेत्र आमतौर पर बंटे होते हैं। ये संवाददाता अपने क्षेत्र की घटनाओं, संवाददाता सम्मेलनों और विज्ञप्तियों के जरिये समाचार संकलन का कार्य करते हैं। साथ ही साथ विशेष खोजपूर्ण समाचार के कार्य में भी निरंतर लगे रहते हैं।

२. मुख्य संवाददाता

समाचार पत्र के कार्यालय में कार्यालय संवाददाताओं को कार्य का वितरण और उन्हें उस कार्यदिन में होने वाली प्रेस कांफ्रेंस, सम्मेलन, समारोहों आदि में भेजने की जिम्मेदारी निभानेवाला मुख्य संवाददाता कहलाता है। सभी तरह के प्रेस नोट, प्रेस विज्ञप्तियां आदि मुख्य संवाददाता को ही प्रेषित की जाती हैं। मुख्य संवाददाता पूर्णकालिक होते हैं।

३. विशेष संवाददाता

विशेष संवाददाता देश एवं राष्ट्र के मुख्य स्थानों पर नियुक्त होते हैं और वे राष्ट्रीय महत्व के समाचारों के संकलन के साथ उनके विश्लेषण, विवेचन आदि का कार्य भी करते हैं। ये संवाददाता पूर्णकालिक होते हैं।

४. अंशकालिक संवाददाता

छोटे स्थानों के समाचार संकलित करने वाले संवाददाता अंशकालिक होते हैं। ऐसे संवाददाता आवश्यकतानुसार तार, टेलीफोन, फैक्स अथवा ईमेल के जरिये समाचार प्रेषित करते हैं। अंशकालिक संवादाता समाचार कार्यालय से दूर केंद्रस्थ नगर के इर्द-गिर्द स्थित छोटे छोटे स्थानों से समाचार प्राप्ति के अन्य स्त्रोतों से अलग भिन्न छोटे – मोटे किन्तु महत्वपूर्ण समाचार एकत्रित करके भेजते हैं। ये संवाददाता पूर्णकालिक नहीं होते हैं। इन्हें इनके कार्य के लिये निश्चित अथवा समाचार के आकार के आधार पर पारिश्रमिक दिया जाता है। ये या तो समाचार पत्रों और संवाद समितियों के लिये कार्य करते हैं या उनका मूल व्यवसाय कोई और होता है।

संवाददाता के गुण

१. मूलभूत या बुनियादी जानकारी

संवाददाता में इतिहास, भूगोल, अर्थशास्त्र, वाणिज्य, विज्ञान, सैटेलाइट, इलेक्ट्रानिक्स आदि सभी विधाओं की मूलभूत या बुनियादी जानकारी आवश्यक है, ताकि संवाद इकट्ठा करते समय उसे कोई कठिनाई न हो और वह अपनी रिपोर्टिंग उचित तथा यथार्थ रूप में कर सके।

२. भाषाविद्

संवाददाता को अपनी मातृभाषा का ही नहीं, बल्कि राजभाषा, राष्ट्रभाषा, स्थानीय भाषा और देश – विदेश की कम से कम एक-दो भाषाओं का ज्ञान होना आवश्यक है, क्योंकि संवाददाता को कई भाषाओं का समन्वय उसे समाचार संकलन कर समाचार का रूप देना होता है और भाषा के अज्ञान के कारण आने वाली रुकावट को दूर करता है।

संवाददाता को विविध और विभन्न भाषाओं का ज्ञान होने पर वह किसी भी स्थान पर किसी भी समय, किसी भी व्यक्ति से अपने विचारों का आदान – प्रदान व साक्षात्कार आदि कर सकता है और घटना, समस्या, समाचार की गहरायी तक जा सकता है।

३. अच्छा साक्षात्कारकर्ता

साक्षात्कार लेने में निपुणता संवाददाता का महत्वपूर्ण गुण है। इस गुण के कारण संवाददाता को किसी घटना व विषय विशेष के बारे में वैयक्तिक साक्षात्कार, समूह साक्षात्कार, विशेष साक्षात्कार के माध्यम से आवश्यक, पूर्ण, ठोस व पुख्ता जानकारी प्राप्त करने में मदद मिलती है।

४. टंकण, आशुलेखन, मुद्रलेखन, कम्प्यूटर का ज्ञान

संवाददाता को टंकण, आशुलेखन, मुद्रलेखन, कम्प्यूटर के आवश्यक तकनीकी ज्ञान से कम से कम समय में समाचार तैयार करने और समाचार पत्र के मुद्रण की शैली व प्रस्तुतिकरण के ढंग के आधार पर समाचार प्रस्तुत करने में सहायता मिलती है।

५. संस्कृति का ज्ञान

भारतीय आदर्श व जीवनमूल्यों का निर्धारण संस्कृति करती है, जिससे हर भारतवासी किसी न किसी रूप में एक दूसरे से जु़ड़ा हुआ है। संवाददाता को अपने देश की संस्कृति का भली-भांति ज्ञान होना एक आवश्यक गुण माना जाता है, क्योंकि इसके कारण पाठकों की भावनाओं, विचारों व आवश्यकताओं को समझकर उसके अनुरूप समाचारों को प्रस्तुत करना संभव हो पाता है, जिससे समाचार पत्र की विश्वसनीयता और न्यायप्रियता उभरकर सामने आने में मदद मिलती है और समाचार पत्र जन-साधारण से मानसिक व भावनात्मक स्तर पर जुड़ जाता है और सामूहिक कल्याण करना संभव हो पाता है।

६. पाठक की रुचि का ज्ञान

संवाददाता का समाचार की समसामयिकता के साथ पाठक की रुचि का भी ख्याल रखना उसकी विशेष योग्यता माना जाता है, क्योंकि पाठकों की रुचि के आधार पर संकलित समाचार समाचार पत्र की लोकप्रियता को बढाने में सहायक होते हैं।

कुशल संवाददाता अपने संवाद की प्रस्तुति इस प्रकार सरल व सुंदर ढंग से करते हैं कि पाठकों को उसे समझने में कठिनाई न हो और वे उसमें अधिकाधिक रुचि लें।

७. जिज्ञासु वृत्ति

हर व्यक्ति के मन में पल-पल कई प्रश्न जन्म लेते रहते हैं, जिनमें से कुछ का उत्तर तो उसे यहां-वहां से, अपने आस-पड़ोस से, अपने प्रयासों से और निजी स्त्रोतों से मिल जाता है, परंतु कुछ महत्वपूर्ण व ठोस प्रश्नों के उत्तर के लिये उसे जन-संचार के अन्य माध्यमों पर निर्भर रहना पड़ता है।

पाठकों की जिज्ञासा को शांत करने के लिये संवाददाता में किसी घटना, समस्या या समाचार को जानने की उत्सुकता का गुण होना अवश्यंभावी होता है, क्योंकि उसकी अपनी जिज्ञासु वृत्ति ही किसी घटना या समाचार की गहरायी तक पहुंचने और वास्तविक तथ्यों, आंकड़ों और सूचनाओं को पाठकों के सामने प्रस्तुत करने में सहायक हो सकती है।

८. साहस और सहनशीलता

साहसी होना संवाददाता का एक मुख्य गुण है। कभी-कभी संवाददाता को समाचार इकट्ठा करने के लिये युद्ध, उपद्रव, प्राकृतिक प्रकोप, जोखिम भरे व खोजपूर्ण स्थानों पर जाना पड़ता है। ऐसे स्थलों पर एक साहसी संवाददाता ही कार्य कर सकता है।

सहनशीलता भी संवाददाता का आवश्यक गुण है। कई बार समाचार संकलन के लिये उसे काफी कष्टों का सामना करना पड़ता है। बिना खाये-पीये, बिना सोये कई-कई दिनों तक उसे कार्य करना पड़ता है। साथ ही, कभी – कभी स्थानीय लोगों के दुर्व्यवहारों व यातनाओं का भी उसे सामना करना पड़ता है। ऐसे में सहनशीलता आवश्यक होती है, जिससे कि वह ऐसी स्थिति में भी अडिग रह सके।

९. सत्यनिष्ठा

सत्यनिष्ठा संवाददाता की एक बुनियादी आवश्यकता है। यदि वह सत्य निष्ठ होगा तो निष्पक्ष रूप से सच्चाई प्रस्तुत कर सकेगा। किसी भी घटना की सच्चाई का पाठकों के सामने लाना बड़ा महत्व रखता है, क्योंकि उसके आधार पर जन-सामान्य की आम राय बनती है। गलत समाचार देने से सामाजिक और राजनैतिक हलचल या तोड़-फोड़ की नौबत आ सकती है।

१०. एकाग्रचित्तता

एकाग्रचित्तता विचारधारा को शक्तिशाली और कल्पना को स्पष्ट करती है। एकाग्रता से संकलित व प्रस्तुत समाचारों को पढने से पाठक की दृष्टि, मनन शक्ति और कार्य शक्ति तीनों शक्तियां सक्रिय हो उठती हैं, इसलिये संवाददाता की यह जिम्मेदारी होती है कि घटना स्थल पर जो नहीं है उसका प्रतिनिधित्व करे, जटिल घटनाओं व विविध समस्याओं को न्याय देने का एकाग्रचित्तता से प्रयत्न करे और पाठकों को शिक्षित प्रशिक्षित और सही रूप से मार्गदर्शित करने का प्रयत्न करे।

११. शंकालु, जागरुक, सतर्क

शंकालु प्रवृत्ति, सतर्कता और चौकन्नापन संवाददाता के महत्वपूर्ण और अनिवार्य गुण हैं, क्योंकि सतर्क रहने पर ही संवाददाता के मन में किसी घटना विशेष के बारे में क्या, क्यों, कौन, कब, कैसे और कहां जैसे संशयात्मक प्रश्न उठते हैं, जो उनके उत्तर पाने के लिये संवाददाता को उत्प्रेरित करते हैं और घटना की गहरायी और सत्यता को जानने के लिये संवाददाता को और अधिक चौकन्ना बनाते हैं।

१२. भूत, वर्तमान और भविष्य दृष्टा (पूर्वानुमान)

संवाददाता में वर्तमान में रहते हुए, इतिहास को तौलते हुए और भविष्य पर नजर रखकर काम करने की योग्यता आवश्यक होती है।

किसी भी समाचार को प्रस्तुत करते समय उस समाचार की पिछली रूपरेखा का उल्लेख करने के साथ भविष्य में पड़ने वाले उसके प्रभाव के विवेचन – विश्लेषण से पाठकों को उस समाचार की पूर्ण व सही ढंग से जानकारी मिलती है।

१३. संप्रेषणीयता

समाचार पत्रों का मुख्य तत्व विचारों का आदान – प्रदान करना और संवाददाता का प्रमुख कार्य समाचार संकलन कर अपने विचार और भावना के सधे व सशक्त शब्दों के साथ अभिव्यक्त करना है, जिसके लिये मौलिक भाषा, विशिष्ट भाषा शैली व विचार प्रकट करने के अनोखे ढंग की निहायत आवश्यकता होती है।

१४. अच्छा वक्ता

अच्छे संवाददाता को एक अच्छा वक्ता होना चाहिए. इसके बिना वह अपनी बात को लोगों के सामने रख पाने में समर्थ नहीं होगा। लोगों के विचार, भावनाएं आदि को अच्छी तरह जान पाने में वह तभी सफल होगा, जब वह अपनी बात लोगों के सामने सही ढंग से प्रस्तुत कर सके। ऐसा वह तभी कर पाएगा, जब उसमें वक्तृत्व की क्षमता होगी।

२. न्यूज एजेंसी

संवाददाताओं के बाद सबसे अधिक प्रयोग में आने वाला समाचार स्त्रोत न्यूज एजेंसियां हैं। देश – विदेश की कई महत्वपूर्ण घटनाओं के लिये समाचार पत्र व चैनलों को इन्हीं पर निर्भर रहना पड़ता है। छोटे और कुछ मझोले समाचार पत्र तो पूरी तरह इन्हीं पर निर्भर होते हैं। देश के दूरदराज इलाकों व विदेशों के विश्वसनीय समाचार प्राप्त करने का यह सस्ता व सुलभ साधन है।

अपने देश में प्रमुख रूप से चार राष्ट्रीय न्यूज एजेंसियां काम कर रही हैं। ये हैं यूनाइटेड न्यूज आफ इंडिया (यूएनआई), प्रेस ट्रस्ट आफ इंडिया (पीटीआई), यूनीवार्ता और भाषा। यूएनआई और पीटीआई अंग्रेजी की न्यूज एजेंसी हैं, जबकि यूनीवार्ता व भाषा इन्हीं की हिन्दी समाचार सेवाएं हैं। इनके अतिरिक्त कई अन्य समाचार, विचार और फीचर एजेंसियां हैं, जिनका उपयोग मुख्य रूप से समाचार पत्रों द्वारा किया जा रहा है। बढती प्रतिद्वंदिता के चलते अब विदेशों के समाचारों के लिये विभिन्न विदेशी भाषाओं की न्यूज व फोटो एजेंसियों का भी सहारा लिया जा रहा है।

३. इंटरनेट

बीसवीं सदी के अंतिम दो दशकों में कम्प्यूटर के प्रयोग और नये – नये साफ्टवेयरों के कमाल ने समाचार पत्रों को ही नहीं, बल्कि समाचार पत्रों के दफ्तरों तथा समाचार को एकत्र करने वालों, सम्पादन करने वालों और उन्हें सजा-संवारकर कर प्रस्तुत करने वालों व उनकी सोच को भी बदल डाला। दूसरी ओर पाठकों की अपनी अभिरुचि व उनकी अपनी सोच में भी बहुत बड़ा बदलाव आया है। इसके चलते समाचार पत्र निरंतर बदलते रहने पर मजबूर हुए हैं। इस बदलाव को गति देने का कार्य किया है इंटरनेट ने, जिसने समाचारों को न केवल अद्यतन बनाने में सहयोग किया है, बल्कि देश – विदेश के ताजातरीन समाचारों को सहजता से उपलब्ध कराने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

सच कहा जाये तो इंटरनेट और इंट्रानेट ने समाचार पत्रों व उनके कार्यालयों की शक्ल ही बदलकर रख दी है। एक ही यूनिट से कई – कई ताजा संस्करण निकलना और वह भी रंगीन पृष्ठों के साथ, बहुत ही आसान हो गया है। बहुतेरे समाचारों के इंटरनेट संस्करण भी निकाले जा रहे हैं। वेब दुनिया में विचरते इन समाचार पत्रों के संस्करणों ने न केवल दुनिया को बहुत छोटा कर दिया है, बल्कि पूरी दुनिया को सोलह से बीस पृष्ठों वाले समाचार पत्र में प्रस्तुत करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है।

जहां तक इंटरनेट के समाचार स्त्रोत के रूप में प्रयोग होने की बात है, तो यहां कहा ही जा सकता है कि इक्कीसवीं सदी के पहले दशक के प्रारम्भ में ही कई समाचार पत्रों ने इंटरनेट के भरोसे ही देश – विदेश का पूरा पृष्ठ ही देना शुरू कर दिया था। सबसे बड़ी बात यह कि जिन विजुअल्स के लिये समाचार पत्र व पाठक तरसते रहते थे, वे सब अब बहुत ही आसानी से उपलब्ध होने लगे हैं। इंटरनेट ने विदेशी समाचारों व फोटो के लिये अब एजेंसियों पर निर्भरता लगभग समाप्त कर दी है। देश – विदेश के कई स्वतंत्र पत्रकार व फोटोग्राफर अपने द्वारा तैयार समाचारों और फोटों को एजेंसियों की अपेक्षा इंटरनेट के माध्यम से अधिक त्वरित गति से उपलब्ध करा रहे हैं। आज जिस संवाददाता व फोटोग्राफर की अपनी वेबसाइट नहीं है, उसे बहुत पिछड़ा हुआ माना जा रहा है। यही वजह है कि अब पत्रकारों के लिये कम्प्यूटर साक्षरता के साथ-साथ नेटवर्क साक्षरता अनिवार्य होती जा रही है।

४. विज्ञप्तियां

समाचारों का बहुत बड़ा स्त्रोत विज्ञप्तियां ही होती हैं। बहुत बार ऐसा होता है कि समाचार पत्र के पृष्ठों को भरने के लिये ताजा समाचार उपलब्ध ही नहीं होते, ऐसे में कार्यालय में पहुंची विज्ञप्तियां यानी प्रेस नोट ही वरदान साबित होती हैं। प्राय: विज्ञप्तियां दो प्रकार की होती हैं – सामान्य और सरकारी विज्ञप्तियां।

सामान्य विज्ञप्तियां किसी शैक्षिक, सामाजिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक, खेल, आर्थिक, तकनीकी आदि के संस्थान, स्वयंसेवी संगठन, क्लब और संस्थाओं, राजनीतिक दल, श्रमिक-कर्मचारी संगठन, सामान्य जन आदि से भेजी जाती हैं। समाचार पत्रों में उपलब्ध स्थान का बहुत बड़ा हिस्सा इन्ही विज्ञप्तियों से भरा जाता है। समाचार पत्रों के कार्यालय में बहुत से ऐसे लोग मिल जाएंगे, जो अथ विज्ञप्ति दाता तेरी जय हो कथन के ही पोषक होते हैं।

सरकारी विज्ञप्तियां विभिन्न सरकारी कार्यालयों द्वारा या तो सीधे या फिर सूचना कार्यालय के माध्यम से कार्यालयों में पहुंचायी जाती हैं। केन्द्र व प्रदेश सरकार के मंत्रियों के कार्यक्रमों व उनके वक्तव्यों से जुड़े समाचारों की विज्ञप्तियां सूचना विभाग के माध्यम से ही प्राप्त होती है। समाचार पत्रों में एक चलन सा है कि सरकारी संस्थानों या अर्धसरकारी उपक्रमों द्वारा सीधे या फिर सूचना विभाग द्वारा जारी विज्ञप्तियों को जस का तस छाप दिया जाता है।

होना यह चाहिए कि विज्ञप्तियों से अपने समाचार पत्र की भाषा, शैली व प्रस्तुतिकरण के आधार पर समाचार तैयार किये जाएं। यह मानकर चलना चाहिए कि अच्छे पाठक हमेशा संवाददाताओं द्वारा लिखे व प्रस्तुत किये गये समाचारों को ही पढना चाहते हैं। विज्ञप्तियों को सिरे से खारिज कर देने की प्रवृत्ति बहुतों में देखने को मिलती है। कई संवाददाता विज्ञप्तियों की एक लाइन पकड़कर पूरा का पूरा एक्सक्लूसिव समाचार तैयार कर लेने में कामयाब हो जाते हैं और उन्हें बाइलाइन यानी समाचार पर नाम भी मिल जाता है। कुशल संवाददाता विज्ञप्तियों को सतर्क होकर पढता है और न केवल रुचिकर समाचार बनाता है, बल्कि इनसेट और बाक्स भी तलाश लेता है।

५. लोक सम्पर्क

यह एक सामान्य का नियम है कि वही संवाददाता सफल हो पाता है, जो नित्य एक नये आदमी से मिलता है या उससे सम्पर्क साधता है। वास्तव में बहुत से समाचार आम आदमी के माध्यम से ही संवाददाता तक पहुंचते हैं। भले ही आम आदमी संवाददाता को मात्र एक सूत्र पकड़ाते हैं और पूरे समाचार का ताना-बाना स्वयं संवाददाता को ही बुनना पड़ता है, लेकिन आम आदमी का संवाद सूत्र में कार्य कर देना ही समाचार पत्र या समाचार चैनल के प्रचार – प्रसार के लिये काफी होता है। सच्चाई यह भी है कि यदि किसी समाचार पत्र या चैनल के लिये आम आदमी सूत्र की तरह काम करने लगे तो समझ लेना चाहिए कि अमुक समाचार पत्र या चैनल की लोकप्रियता बहुत अधिक बढ रही है।

कुशल संवाददाता वही होता है, जो अपने समाचार क्षेत्र से सम्बंधित सूत्रों को तैयार किये रहता है। ऐसे संवाददाताओं से समाचार छूट जाने का प्रश्न ही नहीं उठता। वास्तव में सूत्र यदि सजग हों तो किसी महत्वपूर्ण घटना-दुर्घटना, भ्रष्टाचार, दुराचार आदि की सूचना सूत्र से सम्बंधित संवाददाता या समाचार पत्र को पहले मिलती है, पुलिस प्रशासन को बाद में। वास्तव में सूत्रों का जाल बिछाने की कवायद समाचार पत्र प्रबंधन की ओर से भी होती है। बीसवीं सदी के अंत से थोड़े से मानदेय पर संवादसूत्र रखने की परम्परा प्रारम्भ हो गयी थी। वर्तमान में यह परम्परा आगे ही बढी है। फिर भी इन मानदेय वाले संवाद सूत्रों से कहीं अधिक सतर्क, सचेत व तत्पर संवाददाता द्वारा तैयार स्वयं के अवैतनिक सूत्र होते हैं।

६. रेडियो व टीवी

समाचार के परम्परागत स्त्रोतों में आज भी रेडियो व टीवी का प्रमुख स्थान बना हुआ है। बहुत पहले से रेडियो का इस्तेमाल स्त्रोत के रूप में होता आया है। रेडियो से मिले एक या दो पंक्तियों के समाचार पाकर उसे विस्तृत रूप से प्राप्त कर समाचार पत्र में प्रस्तुत कर देने की कवायद बहुत दिनों से होती आई है।

खबरिया चैनल भी समाचार पत्रों के लिये स्त्रोत का कार्य करते हैं। कभी – कभी तो दूर-दराज के समाचारों को टीवी से प्राप्त करके उसे स्थानीयता से जोड़ा जाता है। छोटे समाचार पत्र टीवी के समाचारों और फोटो को प्राप्त करके ही खुद के पृष्ठ भरा करते हैं। वास्तव में जहां समाचार पत्र के संवाददाता नहीं हैं, वहां का टीवी ही सबसे बड़ा स्त्रोत तो है ही, वहां भी महत्वपूर्ण है जहां संवाददाताओं की फौज है। ऐसा इसलिये कि कभी – कभी समाचार टीवी से ही पता चलते हैं और तब समाचार पत्रों के संवाददाता घटना स्थल पर पहुंचते हैं या फिर येन – केन प्रकारेण उस समाचार का विस्तृत रूप प्राप्त करते हैं। सच यह भी है कि कभी – कभी समाचार पत्रों से मिली खबर पर टीवी संवाददाता सक्रिय होते हैं और सजीव विजुअल्स की सहायता से उसे प्रस्तुत करते हैं। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मी़डिया एक दूसरे के पूरक हैं।

७. साक्षात्कार व प्रेस वार्तायें

साक्षात्कार और प्रेस वार्तायें भी समाचारों के अच्छे स्त्रोत हैं। इनसे कभी – कभी ऐसे समाचार भी मिल जाते हैं जो समाचार पत्रों व समाचार चैनलों की लीड यानी मुख्य समाचार बन जाते हैं। स्त्रोत के रूप में प्रेस ब्रीफिंग और प्रेस से मिलिये का भी उपयोग किया जाता है। अगले अध्याय में इसकी विस्तृत चर्चा की जाएगी।

गुरुवार, 5 नवंबर 2009

समाचार के प्रकार

बदलती दुनिया, बदलते सामाजिक परिदृश्य, बदलते बाजार, बाजार के आधार पर बदलते शैक्षिक-सांस्कृतिक परिवेश और सूचनाओं के अम्बार ने समाचारों को कई – कई प्रकार दे डाले हैं। कभी उंगलियों पर गिन लिये जाने वाले समाचार के प्रकारों को अब पूरी तरह गिना पाना संभव नहीं है। एक बहुत बड़ा सच यह है कि इस समय सूचनाओं का एक बहुत बड़ा बाजार विकसित हो चुका है। इस नये – नवेले बाजार में समाचार उत्पाद का रूप लेते जा रहे हैं। समाचार पत्र हों या चैनल, हर ओर समाचारों को ब्रांडेड उत्पाद बनाकर परोसने की कवायद शुरू हो चुकी है। खास और एक्सक्लूसिव बताकर समाचार को पाठकों या दर्शकों तक पहुंचाने की होड़ ठीक उसी तरह है, जिस तरह किसी कम्पनी द्वारा अपने उत्पाद को अधिक से अधिक उपभोक्ताओं तक पहुंचाना।

समाचारों का मार्केट तैयार करने की बात बड़ी तेजी से सामने आ रही है। कुछ नया करके आगे निकल जाने की होड़ में लगभग सभी समाचार पत्र और चैनल शामिल हैं। यही वजह है कि बीसवीं सदी के अंतिम दशक से समाचारों के प्रकारों की फेहरिस्त लगातार बढती नजर आ रही है। इंटरनेट के प्रयोग ने इस फेहरिस्त को लम्बा करने और सम्यक व अद्यतन जानकारियों से लैस करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। सच तो यह है कि इंटरनेट ने भारत के समाचार पत्रों को विश्व स्तर के समाचार पत्रों की श्रेणी में ला खड़ा किया है। सर्वाधिक गुणात्मक सुधार व विकास हिन्दी व अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में देखने को मिला है।

समाचार के कई प्रकार हैं। घटना के महत्व, अपेक्षितता, अनपेक्षितता, विषय क्षेत्र, समाचार का महत्व, संपादन हेतु प्राप्त समाचार, प्रकाशन स्थान, समाचार प्रस्तुत करने का ढंग आदि कई आधारों पर समाचारों का विभाजन, महत्ता व गौणता का अंकन किया जाता है। तथा उसके आधार पर समाचारों का प्रकाशन कर उसे पूर्ण, महत्वपूर्ण व सामयिक बनाया जा सकता है।

क. प्रकाशन स्थान के आधार पर

१. स्थानीय समाचार

गांव या कस्बे, जहां से समाचार पत्र का प्रकाशन होता हो, विद्यालय या अस्पताल की इमारत का निर्माण, स्थानीय दंगे, दो गुटों में संघर्ष जैसे स्थानीय समाचार, जो कि स्थानीय महत्व और क्षेत्रीय समाचार पत्रों की लोकप्रियता को बढाने में सहायक होने के कारण स्थानीय समाचार पत्रों में विशेष स्थान पाते हों, स्थानीय समाचार कहलाते हैं। समाचार यदि लोगों से सीधे जुड़े होते हैं तो उसकी प्रसार व प्रचार की स्थिति बहुत अधिक मजबूत हो जाती है। इधर कई समाचार पत्रों ने अपने स्थानीय संस्करण प्रकाशित करने शुरू कर दिये हैं। ऐसे में दो से सात पृष्ठ स्थानीय समाचारों से भरे जा रहे हैं। यह कवायद स्थानीय बाजार में अपनी पैठ बनाने की भी है, ताकि स्थानीय छोटे – छोटे विज्ञापन भी आसानी से प्राप्त किये जा सकें। स्थानीय समाचार में जन सहभागिता भी सुनिश्चित की जाती है, ताकि समाचार पत्र को लेग अपनी ही आवाज का प्रतिरूप मान सकें। कई समाचार पत्रों ने अपने स्थानीय कार्यालय या ब्यूरो स्थापित कर दिये हैं और वहां संवाददाताओं की कई स्तरों वाली फौज भी तैनात कर रखी है।

समाचार चैनलों में भी स्थानीयता को महत्व दिया जाने लगा है। कई समाचार चैनल समाचार पत्रों की ही तरह अपने समाचारों को स्थानीय स्तर पर तैयार करके प्रसारित कर रहे हैं। वे छोटे – छोटे आयोजन या घटनाक्रम, जो समाचारों के राष्ट्रीय चैनल पर बमुश्किल स्थान पाते थे, अब सरलता से टीवी स्क्रीन पर प्रसारित होते दिख जाते हैं। कुछ शहरों में स्थानीय केबल समाचार चैनल भी शुरु हो गये हैं, और बहुत लोकप्रिय सिद्ध हो रहे हैं। यह कहा जा सकता है कि आने वाले दिनों में स्थानीय स्तर पर समाचार चैनल संचालित करने की होड़ मचने वाली है।

२. प्रादेशिक या क्षेत्रीय समाचार

जैसे – जैसे समाचार पत्र व चैनलों का दायरा बढता जा रहा है, वैसे – वैसे प्रादेशिक व क्षेत्रीय समाचारों का महत्व भी बढ रहा है। एक समय था कि समाचार पत्रों के राष्ट्रीय संस्करण ही प्रकाशित हुआ करते थे। धीरे – धीरे प्रांतीय संस्करण निकलने लगे और अब क्षेत्रीय व स्थानीय संस्करण निकाले जा रहे हैं।

किसी प्रदेश के समाचार पत्रों पर ध्यान दें तो उसके मुख्य पृष्ठ पर प्रांतीय समाचारों की अधिकता रहती है। प्रांतीय समाचारों के लिये प्रदेश शीर्षक से पृष्ठ भी प्रकाशित किये जाते हैं। इसी तरह से पश्चिमांचल, पूर्वांचल या फिर बुंदेलभूमि शीर्षक से पृष्ठ तैयार करके क्षेत्रीय समाचारों को प्रकाशित किया जाने लगा है। प्रदेश व क्षेत्रीय स्तर के ऐसे समाचारों को प्रमुखता से प्रकाशित करना आवश्यक होता है, जो उस प्रदेश व क्षेत्र की अधिसंख्य जनता को प्रभावित करते हों। कुछ समाचार चैनलों ने भी क्षेत्रीय व प्रादेशिक समाचारों को अलग से प्रस्तुत करना शुरू कर दिया है।

३. राष्ट्रीय समाचार

देश में हो रहे आम चुनाव, रेल या विमान दुर्घटना, प्राकृतिक आपदा – बाढ, अकाल, महामारी, भूकम्प आदि – रेल बजट, वित्तीय बजट से सम्बंधित समाचार, जिनका प्रभाव अखिल देशीय हो, राष्ट्रीय समाचार कहलाते हैं। राष्ट्रीय समाचार स्थानीय और प्रांतीय समाचार पत्रों में भी विशेष स्थान पाते हैं।

राष्ट्रीय स्तर पर घट रही हर घटना – दुर्घटना समाचार पत्रों व चैनलों पर महत्वपूर्ण स्थान पाती है। देश के दूर-दराज इलाके में रहने वाला सामान्य सा आदमी भी यह जानना चाहता है कि राष्ट्रीय राजनीति कौन सी करवट ले रही है, केन्द्र सरकार का कौन सा फैसला उसके जीवन को प्रभावित करने जा रहा है, देश के किसी भी कोने में घटने वाली हर वह घटना जो उसके जैसे करोड़ों को हिलाकर रख देगी या उसके जैसे करोड़ों लोगों की जानकारी में आना जरूरी है।

सच यह है कि इलेक्ट्रानिक मीडिया के प्रचार – प्रसार ने लोगों को समाचारों के प्रति अत्यधिक जागरुक बनाया है। पल प्रति पल घटने वाली हर बात को जानने की ललक ने कुछ और – कुछ और प्रस्तुत करने की होड़ को बढावा दिया है। सच यह भी है कि लोगों में अधिक से अधिक जानकारी हासिल करने की ललक ने समाचार पत्रों की संख्या में तेजी से वृद्धि की है। एक तरफ इलेक्ट्रानिक मी़डिया से मिली छोटी सी खबर को विस्तार से पढाने की होड़ में शामिल समाचार पत्रों का रंग – रूप बदलता गया, वहीं समाचार चैनलों की शुरूआत करके इलेक्ट्रानिक मीडिया ने अपने दर्शकों को खिसकर जाने से रोकने की कवायद शुरू कर दी। हाल यह है कि किसी भी राष्ट्रीय महत्व की घटना-दुर्घटना या फिर समाचार बनने लायक बात को कोई भी छोड़ देने को तैयार नहीं है, न इलेक्ट्रानिक मीडिया और न ही प्रिंट मीडिया। यही वजह है कि समाचार चैनल जहां राष्ट्रीय समाचारों को अलग से प्रस्तुत करने की कवायद में शामिल हो चुके हैं, वहीं बहुतेरे समाचार पत्र मुख्य व अंतिम कवर पृष्ठ के अतिरिक्त राष्ट्रीय समाचारों के दो-तीन पृष्ठ अलग से प्रकाशित कर रहे हैं।

४. अंतर्राष्ट्रीय समाचार

ग्लोबल गांव की कल्पना को साकार कर देने वाली सूचना क्रांति के बाद के इस समय में अंतर्राष्ट्रीय समाचारों को प्रकाशित या प्रसारित करना जरूरी हो गया है। साधारण सा साधारण पाठक या दर्शक भी यह जानना चाहता है कि अमेरिका में राष्ट्रपति के चुनाव का परिणाम क्या रहा या फिर हालीवुड में इस माह कौन सी फिल्म रिलीज होने जा रही है या फिर आतंकवादी सरगना बिन लादेन कहां छिपा हुआ है। विश्व भर के रोचक – रोमांचक को जानने के लिये अब हिन्दी और अन्य क्षेत्रीय भाषाओं के पाठकों और दर्शकों में ललक बढी है। यही कारण है कि यदि समाचार चैनल दुनिया एक नजर में या फिर अंतर्राष्ट्रीय समाचार प्रसारित कर रहे हैं तो हिन्दी के प्रमुख अखबारों ने अराउण्ड द वर्ल्ड, देश विदेश, दुनिया आदि के शीर्षक से पूरा पृष्ठ देना शुरू कर दिया है। समाचार पत्रों व चैनलों के प्रमुख समाचारों की फेहरिस्त में कोई न कोई महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय समाचार रहता ही है।

कई चैनलों व समाचार पत्रों ने विश्व के कई प्रमुख शहरों में, खासकर राजधानियों में, अपने संवाददाताओं को नियुक्त कर रखा है। समाचार पत्रों के विदेशी समाचार वाले पृष्ठ को छायाचित्रों सहित इंटरनेट से तैयार किया जाता है। बहुतेरे समाचार विदेशी समाचार एजेंसियों से प्राप्त किये जाते हैं। कई फ्री-लांसिंग करने वाले यानी स्वतंत्र पत्रकारों व छायाकारों ने अपनी व्यक्तिगत वेबसाइट बना रखी है, जो लगातार अद्यतन समाचार व छायाचित्र उपलब्ध कराते रहते हैं। इंटरनेट पर तैरती ये वेबसाइटें कई मायनों में अति महत्वपूर्ण होती है। सच यह है कि जैसे – जैसे देश में साक्षरता बढ रही है, वैसे – वैसे अधिक से अधिक लोगों में विश्व भर को अपनी जानकारी के दायरे में लाने की होड़ मच गई है। यही वजह है कि समाचार से जुड़ा व्यवसाय अब अंतर्राष्ट्रीय समाचारों को अधिक से अधिक आकर्षक ढंग से प्रस्तुत करने की होड़ में शामिल हो गया है।

ख. विषय विशेष के आधार पर

निरंतर बदलती दुनिया ने समाचारों के लिये विषयों की भरमार कर दी है। पहले जहां मात्र राजनीति के समाचार, अपराध के समाचार, खेल-कूद के समाचार, साहित्य-संस्कृति के समाचार से ही समाचार पत्रों का काम चल जाया करता था, वहीं अब सूचना क्रांति, बदलते शैक्षिक परिवेश और बदलते सामाजिक ताने-बाने ने समाचारों के लिये ढेरों विषय पैदा कर दिये हैं। देश में बढ रही साक्षरता व जागरुकता ने भी समाचारों के वैविध्य को बढा दिया है। अब कोई भी समाचार पत्र या चैनल समाचारों के वैविध्य को अपनाये बिना चल ही नहीं सकता। मल्टीप्लेक्स और मल्टी टेस्ट रैस्त्रां के इस समय में पाठक-दर्शक वह सब कुछ पढना-सुनना-देखना चाहता है, जो उसके इर्द-गिर्द घट रहा है। उसे हर उस विषय से जुड़ी ताजा जानकारी चाहिए, जो सीधे या फिर परोक्ष रूप से उससे जुड़ी हुई है। जमाना मांग और आपूर्ति के बीच सही तालमेल बैठाकर चलने का है और यही वजह है कि कोई भी समाचार पत्र या चैनल ऐसा कुछ भी छोड़ने को तैयार नहीं है, जो उसके पाठक या दर्शक की पसंद हो सकती है। दिख रहा है सब कुछ के इस समय में वे विषय भी समाचार बन रहे हैं, जिनकी चर्चा सभ्य समाज में करना वर्जित माना जाता रहा है।

विषय विशेष के आधार पर हम समाचारों को निम्नलिखत प्रकारों में विभेदित कर सकते हैं -

(१) राजनीतिक समाचार

(२) अपराध समाचार

(३) साहित्यिक-सांस्कृतिक समाचार

(४) खेल-कूद समाचार

(५) विधि समाचार

(६) विकास समाचार

(७) जन समस्यात्मक समाचार

(८) शैक्षिक समाचार

(९) आर्थिक समाचार

(१०) स्वास्थ्य समाचार

(११) विज्ञापन समाचार

(१२) पर्यावरण समाचार

(१३) फिल्म-टेलीविजन (मनोरंजन) समाचार

(१४) फैशन समाचार

(१५) सेक्स समाचार

(१६) खोजी समाचार . . . आदि।

(१) राजनीतिक समाचार

समाचार पत्रों में सबसे अधिक पढे जाने वाले और चैनलों पर सर्वाधिक देखे-सुने जाने वाले समाचार राजनीति से जुड़े होते हैं। राजनीति की उठा-पटक, लटके-झटके, आरोप – प्रत्यरोप, रोचक-रोमांचक, झूठ-सच, आना-जाना, आदि से जुड़े समाचार सुर्खियों में होते हैं। भारत जैसे देश में, जहां का आम आदमी साल के ३६५ दिनों में से लगभग दो दिन वोटर के रूप में बर्ताव करता है, राजनीति से जुड़े समाचारों का पूरा का पूरा बाजार विकसित हो चुका है। इस राजनीतिक समाचारों के बाजार में समाचार पत्र और समाचार चैनल अपने उपभोक्ताओं को रिझाने के लिये नित नये प्रयोग करते नजर आ रहे हैं। चुनाव के मौसम में इन प्रयोगों की झड़ी लग जाती है और हर कोई एक दूसरे को पछाड़ कर आगे निकल जाने की होड़ में शामिल हो जाता है।

राजनीतिक समाचारों के बाजार में अपनी पैठ को मजबूत करने और उपभोक्ताओं को चटपटे उत्पाद देने की जुगत में समाचार पत्रों व चैनलों ने राजनीतिक पार्टियों के लिये अलग – अलग संवाददाता नियुक्त कर रखे हैं। राजनीतिक पार्टियां अब बहुत सचेत हो चुकी हैं और अब मात्र पार्टी प्रवक्ता नियुक्त करके या फिर मीडिया प्रकोष्ठ स्थापित करके काम नहीं चलाया जाता, बल्कि सुव्यवस्थित ढंग से मीडिया मैनेजमेंट कोर स्थापित किये जा रहे हैं। सूचना क्रांति के बाद घटी इस घटना को अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जाना चाहिए कि सन् २००४ के आम चुनावों में कुछ पार्टियों ने देश भर से अपने पार्टी प्रवक्ताओं और मीडिया प्रभारियों को बुलाकर विधिवत प्रशिक्षण दिया कि किस तरह वे समाचार पत्रों और चैनलों को मैनेज करें और मीडिया फ्रैंडली नजर आयें।

सच्चाई यह है कि किसी भी लोकसभा – विधानसभा चुनावों में प्रत्याशी समाचार पत्रों व चैनलों में अधिक से अधिक प्रचार पाना चाहते हैं और इसके लिये वे तरह – तरह से स्थानीय संवाददाताओं को प्रभावित करने की कोशिश करते हैं। कभी अपनी जाति-धर्म-रिश्ते-क्षेत्र का हवाला देकर तो कभी धन का प्रलोभन व धमकियों का डर बैठाकर। ऐसे में जो समाचार पत्र या चैनल लोगों में अत्यधिक लोकप्रिय होते हैं, उन पर दवाब अधिक होता है। यही वजह है कि इनसे जुड़े संवाददाताओं के सामने यह चुनौती होती है कि वे किस तरह अपनी व अपने संस्थान की शुचिता और निष्पक्षता को बचाये रख सकें।

राजनीतिक समाचारों की प्रस्तुति में पहले से अधिक बेबाकी आयी है। रोचक ढंग से राजनीति पर मार करने की रणनीति को लोगों द्वारा सराहा भी जा रहा है। सच यह है कि अपने देश में लोकतंत्र की दुहाई के साथ जीवन के लगभग हर क्षेत्र में राजनीति की दखल बढा है और इसी कारण राजनीतिक समाचारों की भी संख्या बढी है। ऐसे में इन समाचारों को नजरअंदाज कर जाना संभव नहीं है। राजनीतिक समाचारों की आकर्षक प्रस्तुति लोकप्रियता हासिल करने का बहुत बड़ा साधन बन चुकी है।

२. अपराध समाचार

राजनीतिक समाचारों के बाद अपराध समाचार ही महत्वपूर्ण होते हैं। बहुतेरे पाठकों व दर्शकों को अपराध समाचार जानने की भूख होती है। इसी भूख को शांत करने के लिये ही समाचार पत्रों में अपराध डायरी व चैनलों पर सनसनी, वारदात, क्राइम फाइल जैसे समाचार कार्यक्रम प्रकाशित-प्रसारित किये जा रहे हैं। एक अनुमान के अनुसार किसी समाचार पत्र में लगभग पैंतीस प्रतिशत समाचार अपराध से जुड़े होते हैं। सच तो यह है कि अपराध के समाचार सामने आ जाने के बाद कुछ महत्वपूर्ण समाचारों को छोड़कर सभी बेमानी लगने लगते हैं।

हर संवाददाता के लिये यह समझना जरूरी है कि अपराधिक घटनाओं का सीधा सम्बंध व्यक्ति, समाज, सम्प्रदाय, समुदाय, धर्म और देश से होता है। अपराधिक घटनाओं का प्रभाव यदि व्यापक होता है तो यह जरूरी हो जाता है कि एक बड़े पाठक-दर्शक वर्ग का ख्याल रखा जाये तथा घटना से जुड़ी हर संभावित खबर, फोटो और खबर के पीछे की खबर को प्रकाशित व प्रसारित किया जाए। ध्यान देने योग्य बात यह है कि अपराधिक समाचारों को संकलित, लिखते या प्रकाशित-प्रसारित करते समय उसकी कानूनी प्रक्रिया और सामाजिक पहलुओं की सारी जानकारी प्राप्त की जाए। संवाददाता की विश्वसनीयता का भी पूरा का पूरा ख्याल रखा जाये। वास्तव में अपराध समाचार लिखते समय अपनी जवाब-देही व उत्तरदायित्वों का पूरा का पूरा ख्याल करना जरूरी होता है। यह बहुत महत्वपूर्ण है कि अपराध संवाददाता बनाते समय इस बात का ध्यान रखा जाता है कि जिसे यह जिम्मेदारी सौंपी जा रही है, उसे पत्रकारिता के हर पहलू की जिम्मेदारी है भी या नहीं।

३. साहित्यिक-सांस्कृतिक समाचार

समाचार पत्रों व चैनलों पर सांस्कृतिक, साहित्यिक समाचारों का चलन बढा है। यह एक बहुत बड़ा परिवर्तन है कि हिन्दी के समाचार चैनलों ने साहित्य व संस्कृति के समाचारों को न केवल प्रमुखता से देना शुरू किया है, बल्कि साहित्य व संस्कृति के कुछ विशेष समाचार कार्यक्रम ठीक उसी तर्ज पर शुरु किये हैं, जैसा कि समाचार पत्र अपने यहां नियमित साहित्यिक व सांस्कृतिक कालम के रूप में करते आये हैं। एक अध्ययन के अनुसार दर्शकों के एक वर्ग ने अपराध व राजनीति के समाचार कार्यक्रमों से कहीं अधिक अपनी संस्कृति से जुड़े समाचारों व समाचार कार्यक्रमों से जुड़ना पसंद किया है।

समाचार पत्रों ने भले ही व्यंग्य के नियमित कालमों को अब लगभग बंद कर दिया हो, लेकिन साहित्य-संस्कृति के नियमित पृष्ठ दिया जाना नहीं रुका है। इधर कई समाचार पत्रों ने अभियान चला कर दूर-दराज के इलाकों की साहित्यिक व सांस्कृतिक विभूतियों व धराहरों को सामने लाने का अभिनव प्रयास किया और यह पाठकों द्वारा सराहा भी गया है। यह भी कम महत्वपूर्ण नहीं है कि कई समाचार पत्रों ने साहित्यिक-सांस्कृतिक संवाददाता रखने और इन्हीं विषयों से जुड़ी डेस्क बनाने की पहल की है। वास्तव में यह कवायद करनी इसलिये भी जरूरी हो गयी है कि साहित्य व संस्कृति पर उपभोक्तावादी संस्कृति व बाजार का प्रहार दिखाकर केन्द्र व प्रदेश की सरकारें बहुत बड़ा बजट इन्हें संरक्षित करने व प्रचारित-प्रसारित करने में खर्च कर रही हैं। साहित्य व संस्कृति के नाम पर चलने वाली बड़ी – बड़ी साहित्यिक व सांस्कृतिक संस्थाएं आयोजनों, प्रकाशन व पुरस्कारों के नाम पर करोड़ों रुपये खर्च कर रही हैं। ये संस्थाएं सरकारी, अर्धसरकारी व निजी यानी सभी तरह की हैं।

यही नहीं, साहित्य व संस्कृति के नाम पर विवादों के बढने की घटनाएं बढी हैं। वाद – प्रतिवाद, आरोप – प्रत्यारोप और गुटबाजी ने साहित्य – संस्कृति में मसाला समाचारों की संभावनाओं को बहुत बढाया है। साहित्यिक, सांस्कृतिक उठा-पटक को मिर्च-मसाला लगाकर समाचार के रूप में प्रस्तुत करने का चलन बढा है। इस चलन को स्वीकारने वालों की फौज भी तैयार हो गई है। इसीलिये समाचार पत्र, चैनल व पत्रिकायें इन विषयों को छोडकर स्वयं के होने की कल्पना करना ही नहीं चाहते।

४. खेल-कूद समाचार

पाठकों व दर्शकों की एक बहुत बड़ी संख्या खेल समाचारों को पढना, देखना, सुनना चाहती है। हर समाचार संस्थान में खेल संवाददाताओं और खेल डेस्क होना निश्चित है। बहुत से संस्थान के खेल संवाददाता व खेल सम्पादक के रूप में ऐसे ही लोगों की नियुक्ति करते हैं, जो खिला़ड़ी भी हों या पूर्व में रहे हों।

वास्तव में प्रत्येक खेल के अपने तकनीकी शब्द होते हैं और एक निश्चित भाषा भी। खेल के जानकार लोगों को किसी समाचार पत्र व चैनल से यह अपेक्षा होती है कि वह खेल की ताजा व मुकम्मल खबर दे। रोचक – रोमांचक ढंग से खेल समाचारों की प्रस्तुति देते समय इस बात का भी ध्यान रखा जाता है कि खेल शब्दावली का अतिशय प्रयोग करके समाचार को बोझिल न बना दिया जाए। निहायत अजनबी खेल शब्द का प्रयोग करते समय एक बार उसका सामान्य बोलचाल में अर्थ दे देना उचित होता है।

खेल समाचारों के लिये आंकड़े व रिकार्ड प्राण की तरह होते हैं। खेलों की दुनिया में लगातार आंकड़े और रिकार्ड जुड़ते रहते हैं। इसलिये जरूरी है कि खेल संवाददाता व खेल सम्पादक के पास अपनी एक ऐसी कम्प्यूटर फाइल हो, जिसमें आंकड़ों व रिकार्डों को निरंतर दर्ज किया जाता रहे। एक सच यह भी है कि आंकड़े जहां एक तरफ किसी समाचार को रोचक बनाते हैं वहीं अधिकता में बोझिल भी बना देते हैं। आंकड़ों को यदि समाचार के साथ विशेष रूप से पृष्ठ सज्जा के अनुसार प्रस्तुत किया जाए तो अच्छा होता है। खेल समाचारों को यदि रनिंग कमेंट्री यानी आंखों देखा हाल की तरह लिखा जाये तो वह पाठकों के लिये अत्यधिक रुचिकर होता है, लेकिन इसका संक्षिप्त होना बहुत जरूरी है। समाचार चैनलों के सामने खेल प्रस्तुति की बहुत अधिक चुनौतियां नहीं होती। मात्र रोचक प्रस्तुति से ही काम चल जाता है। वहां दृश्य की गुणवत्ता ही दर्शकों के बीच लोकप्रियता तय करती है।

५. विधि समाचार

न्यालाय से जुड़े समाचार भी अपनी अलग अहमियत रखते हैं। नये कानूनों, उनके अनुपालन और उसके प्रभाव से लोगों को परिचित कराना बहुत जरूरी होता है। बहुत से ऐसे लोग होते हैं, जो किसी विशेष मुकदमें की न्यायालयी प्रक्रिया व निर्णय से अवगत होना चाहते हैं। ऐसे मुकदमों की जानकारी देना तो और भी जरूरी होता है, जिनका प्रभाव समाज, सम्प्रदाय, प्रदेश व देश पर पड़ता हो। यही वजह है कि न्याय के हर पक्ष को सही व सार्थक ढंग से रखने के लिये हर समाचार संस्थान में विधि संवाददाताओं की नियुक्ति होती है। इसके लिये विधि की शिक्षा प्राप्त होना जरूरी होता है। कुछ समाचार पत्रों ने अपने यहां कार्यरत अधिवक्ताओं को संवाददाता नियुक्त कर रखा है, जो समय पर विभिन्न न्यायालयों से जुड़ी खबरों को लिखते हैं।

अन्य समाचार

इसी तरह विकास कार्यों से जुड़े विकास समाचार, जन समस्याओं की परत दर परत खोलते समाचार, नये शैक्षिक आयामों व तरह – तरह की शैक्षिक गतिविधियों को प्रस्तुत करते शैक्षिक समाचार, आर्थिक व व्यापार जगत की उठापटक से परिचित कराते समाचार, स्वास्थ्य के हर पहलू से जु़ड़े समाचार, विज्ञान समाचार, पर्यावरण समाचार, मनोरंजन से जुड़े समाचार, फैशन समाचार व सैक्स समाचार भी किसी समाचार पत्र या चैनल के लिये महत्वपूर्ण होते हैं। यहां यह बताते चलें कि सैक्स समाचारों में बलात्कार से जुड़े समाचार नहीं रखे जाते। वास्तव में बड़े – बड़े राष्ट्रीय – अंतर्राष्ट्रीय स्तर के सैक्स स्केण्डलों व प्रमुख व्यक्तियों की निजी जिंदगी के अनछुए पहलुओं को खास से आम कर देने की ललक ने ही सैक्स समाचारों को समाचारों की फेहरिस्त में शामिल कराया है। सैक्स भ्रांतियों को दूर करने और जनसंख्या नियंत्रण करने के बहाने तरह – तरह के समाचार प्रस्तुत करने का भी दौर आन पड़ा है।

समाचारों की बात हो और खोजी समाचार की बात न हो तो बात अधूरी ही रह जाएगी। सामान्य विवरण से हटकर गहराई के तह तक पहुंचाने वाले समाचार, जिसमें पाठक विभिन्न गलियारों से होता हुआ यह जानकारी जानने की अपनी इच्छा को पूरी करने में सफल हो जाता है कि यह घटना क्यों हुई, कैसे हुई और किन – किन लोगों की भागीदारी से हुई। सच यह है कि आज का साधारण सा साधारण आदमी बढते सूचना साधनों से न केवल सीधे जुड़ा हुआ है, बल्कि वह अधिक तार्किक बुद्धि वाला भी है। वह किसी समाचार को ही पढना, सुनना या देखना भर नहीं चाहता, बल्कि उसकी पृष्ठभूमि में तमाम तर्कों के साथ उतर जाना चाहता है। लोगों की इस भूख को खोजी पत्रकारिता द्वारा ही मिटाया जा सकता है।

वास्तव में खोजी पत्रकारिता का सीधा सम्बंध जानने के अधिकार से है। भारत में अभी सूचना के अधिकार प्राप्त कर पाने की बात बहुत निचले पायदान पर पड़ी हुई है। यही वजह है कि खोजी पत्रकारिता को जिस हद तक सफल होना चाहिए था, नहीं हो पा रही है। बहरहाल स्थिति उतनी खराब नहीं है। कई समाचार चैनलों ने अपने छिपे कैमरों के जरिये व कई समाचार पत्रों ने दिन व रात की छापेमारी के जरिये खोजी पत्रकारिता को नया आयाम देने की कोशिश की है और लोकप्रियता हासिल की है।

ग. घटना के महत्व के आधार पर

१. विशिष्ट समाचार

वे समाचार जिनके बारे में पहले से कुछ भी मालूम न हो, परंतु जब वे अकस्मात घटित हों तो उनका विशेष महत्व और प्रभाव होता हो, विशिष्ट समाचार कहलाते हैं। विशिष्ट समाचार अपनी विशिष्टता, विशेषता और खूबी के कारण ही समाचार पत्र के मख्य पृष्ठ पर स्थान पाने योग्य होते हैं। रेल या विमान की बड़ी दुर्घटना, किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति के असामयिक निधन संबंधी समाचार इसी कोटि में आते हैं।

२. व्यापी समाचार

वे समाचार जिनका प्रभाव विस्तृत हो अर्थात जो बहुसंख्यक लोगों को प्रभावित करने वाले तथा आकार में भी विस्तृत हों, व्यापी समाचार कहलाते हैं। ये समाचार अपने आप में पूर्ण होते हैं और समाचार पत्र के प्रथम पृष्ठ पर छाये रहते हैं। इनके शीर्षक अत्यधिक आकर्षक और विशेष रूप से सुशोभित होते हैं, ताकि ये अधिकाधिक लोगों को अपनी ओर आकृष्ट कर सकें। इसके अंतर्गत रेल बजट, वित्तीय बजट, आम चुनाव आदि से संबंधित समाचार आते हैं।

घ. अपेक्षितता-अनपेक्षितता के आधार पर

१. डायरी समाचार

विविध समारोहों, गोष्ठियों, जन-सभाओं, विधान-सभाओं, विधान परिषदों, लोकसभाओं, राज्य सभाओं आदि के समाचार जो अपेक्षित होते हैं और सुनियोजित ढंग से प्राप्त होते हैं, डायरी समाचार कहलाते हैं।

२. सनसनीखेज समाचार

हत्या, दुर्घटना, प्राकृतिक विपदा, राजनीतिक अव्यवस्था आदि से संबंधित समाचार जो अनपेक्षित होते हैं और आकस्मिक रूप से घट जाते हैं, सनसनीखेज समाचार कहलाते हैं।

ड़. समाचार के महत्व के आधार पर

१. महत्वपूर्ण समाचार

बड़े पैमाने पर दंगा, अपराध, दुर्घटना, प्राकृतिक विपदा, राजनीतिक उठापटक से संबंधित समाचार, जिनसे जन-जीवन प्रभावित होता हो और जिनमें शीघ्रता अपेक्षित हो, महत्वपूर्ण समाचार कहलाते हैं।

२. कम महत्वपूर्ण समाचार

जातीय, सामाजिक, व्यावसायिक एवं राजनीतिक संस्थाओ, संगठनों तथा दलों की बैठकें, सम्मेलन, समारोह, प्रदर्शन, जुलूस, परिवहन तथा मार्ग दुर्घटनाएं आदि से सम्बंधित समाचार, जिनसे सामान्य जनजीवन न प्रभावित होता है और जिनमे अतिशीघ्रता अनपेक्षित हो, कम महत्वपूर्ण समाचार कहलाते हैं।

३. सामान्य महत्व के समाचार

आतंकवादियों व आततायियों के कुकर्म, छेड़छाड़, मारपीट, पाकेटमारी, चोरी, ठगी, डकैती, हत्या, अपहरण, बलात्कार के समाचार, जिनका महत्व सामान्य हो और जिनके अभाव में कोई ज्यादा फर्क न पड़ता हो तथा जो सामान्य जनजीवन को प्रभावित न करते हों, सामान्य महत्व के समाचार कहलाते हैं।

च. सम्पादन के लिये प्रस्तुत समाचार के आधार पर

१. पूर्ण समाचार

वे समाचार जिनके तथ्यों, सूचनाओं, विवरणों आदि में दोबारा किसी परिवर्तन की गुंजाइश न हो, पूर्ण समाचार कहलाते हैं। पूर्ण समाचार होने के कारण ही इन्हें निश्चिंतता के साथ संपादित व प्रकाशित किया जाता है।?

२. अपूर्ण समाचार

वे समाचार जो समाचार एजेंसियों से एक से अधिक हिस्सों में आते हैं और जिनमें जारी अथवा मोरा लिखा होता है, अपूर्ण समाचार कहलाते हैं। जब तक इन समाचारों का अंतिम भाग प्राप्त न हो जाये ये अपूर्ण रहते हैं।

३. अर्ध विकसित समाचार

दुर्घटना, हिंसा या किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति का निधन आदि के समाचार, जो कि जब और जितने प्राप्त होते हैं उतने ही, उसी रूप में ही दे दिये जाते हैं तथा जैसे – जैसे सूचना प्राप्त होती है और समाचार संकलन किया जाता है वैसे – वैसे विकसित रूप में प्रकाशित किये जाते हैं, अर्ध विकसित समाचार कहलाते हैं।

४. परिवर्तनशील समाचार

प्राकृतिक विपदा, आम चुनाव, बड़ी दुर्घटना, किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति की हत्या जैसे समाचार, जिनके तथ्यों, सूचनाओं तथा विवरणों में निरंतर परिवर्तन व संशोधन की गुंजाइश हो, परिवर्तनशील समाचार कहलाते हैं।

५. बड़े अथवा व्यापी समाचार

आम चुनाव, केन्द्र सरकार का बजट, राष्ट्रपति का अभिभाषण जैसे समाचार, जो व्यापाक, असरकारी व प्रभावकारी होते हैं तथा जिनके विवरणों में विस्तार व विविधता होती है और जो लगभग समाचार पत्र के प्रथम पृष्ठ का पूरा ऊपरी भाग घेर लेते हैं, बड़े अथवा व्यापी समाचार कहलाते हैं।

छ. समाचार प्रस्तुत करने के आधार पर

१. सीधे समाचार

वे समाचार जिनमें तथ्यों की व्याख्या नहीं की जाती हो, उनके अर्थ नहीं बताये जाते हों तथा तथ्यों को सरल, स्पष्ट और सही रूप में ज्यों का त्यों प्रस्तुत किया जाता हो, सीधे समाचार कहलाते हैं।

२. व्याख्यात्मक समाचार
वे समाचार जिनमें घटना के साथ ही साथ पाठकों को घटना के परिवेश, घटना के कारण और उसके विशेष परिणाम की पूरी जानकारी दी जाती हो, व्याख्यात्मक समाचार कहलाते हैं।

मंगलवार, 3 नवंबर 2009

समाचार और संवाददाता

समाचार क्या?

हिन्दी के शब्द समाचार का अर्थ सम्यक आचरण करना या व्यवहार बतलाना है।

हिन्दी भाषा के समाचार को अंग्रेजी में न्यूज कहा जाता है। अंग्रेजी का न्यूज शब्द न्यू का बहुवचन है, जो कि अंग्रेजी वर्णमाला के चार अक्षरों NEW और S से मिलकर बना है। ये चार अक्षर North, East, West और South क्रमश: उत्तर, पूर्व, पश्चिम और दक्षिण के द्योतक हैं तथा इन चारों दिशाओं में हो रही विविध घटनाओं की जानकारियों व सूचना का संकलन समाचार कहलाता है।

अंग्रेजी का न्यू शब्द लैटिन के नोवा और संस्कृत के नव शब्द का पर्याय है, जिसका अर्थ है नवीन या नूतन।

समाचार शब्द वृत्तांत, खबर, संवाद, विवरण, सूचना आदि नामों से भी जाना जाता है।

कई विद्वान, पत्रकारों, बुद्धिजीवियों ने समाचार के सम्बंध में अपने-अपने विचार व मत प्रकट किये हैं, जिसके अनुसार – समाचार सामयिक असामान्य विचार, घटना या विवाद के ऐसे तथ्यपूर्ण, शुद्ध, निष्पक्ष व सरस विवरण होते हैं जो बहुसंख्यकों की अधिकतम अभिरुचियों को एक साथ प्रभावित करते हैं।

विलियम एम. माल्सबाई के अनुसार – किसी समय में होने वाली उन महत्वपूर्ण घटनाओं के सही और पक्षपातरहित विवरण को, जिसमें उस पत्र के पाठकों की अभिरुचि हो, समाचार कहते हैं। जार्ज एच. मौरिस के मतानुसार – समाचार जल्दी में लिखा गया इतिहास है। जे.जे.सिंडलर की राय में – पर्याप्त संख्या में मनुष्य जिसे जानना चाहे वह समाचार है। शर्त यह है कि सुरुचि तथा प्रतिष्ठा के नियमों का उल्लंघन न करें। एम. लाइस स्पेंसर के विचारानुसार – वह सत्य घटना या विचार जिसमें बहुसंख्य पाठकों की अभिरुचि है समाचार है। प्रो. विलियम ब्लेयर की राय में – अनेक व्यक्तियों की अभिरुचि जिस सामयिक बात में हो वह समाचार है। सर्वश्रेष्ठ समाचार वह है जिसमें बहुसंख्यकों की अधिकतम रुचि हो।

विलियम एल. रिवर्स के मतानुसार – समाचार घटना का वर्णन है। घटना स्वयं समाचार नहीं है। घटनाओं, तथ्यों और विचारों की सामयिक रिपोर्ट समाचार है, जिसमें पर्याप्त लोगों की रुचि हो। रा.रा. खांडेलकर के अनुसार – दुनिया में कहीं भी किसी समय कोई छोटी-मोटी घटना या परिवर्तन हो उसका शब्दों में जो वर्णन होगा उसे समाचार कहते हैं। टर्नर कालेज के विचारानुसार – वह सभी कुछ जिससे आप कल तक अनभिज्ञ थे, समाचार है। अंबिका प्रसाद वाजपेयी के अनुसार – हर घटना समाचार नहीं है, सिर्फ वही घटना समाचार बन सकती है जिसका कमोबेश सार्वजनिक हित हो, अस्पतालों में लोग भर्ती होते रहते हैं, अच्छे होते हैं और मरते भी हैं। लेकिन कोई मरीज इसलिये मर जाए कि अस्पताल में पहुंचने पर उसे देखने वाला कोई नहीं था, या डाक्टर की गैर मौजूदगी में कंपाउण्डर ने उसका गलत इलाज कर दिया, या नर्स ने एक मरीज की दवा दूसरे मरीज को दे दी, या आपरेशन करते समय कोई औजार पेट में रह गया और पेट सी दिया गया, ये सब समाचार हो सकते हैं। इसी तरह कोई नवीनतम आपरेशन हो, जैसे हृदय परिवर्तन, वह भी समाचार का विषय है। हेडन के कोश के अनुसार – सब दिशाओं की घटनाओं को समाचार कहते हैं। वूत्सले और कैंपवेल का मानना है कि – समाचार किसी वर्तमान विचार, घटना का विवाद का ऐसा विवरण है जो उपभोक्ताओं को आकर्षित करे। हार्पर लीच और जान सी. कैरोल के अनुसार – समाचार अति गतिशील साहित्य है। समाचार पत्र समय के करघे पर इतिहास के बहुरंगे बेलबूटेदार कपड़े को बुनने वाले तकुए है। मैंसफील्ड का कहना है कि घटना समाचार नहीं है, बल्कि वह घटना का विवरण है, जिसे उनके लिये लिखा जाता है जिन्होंने उसे देखा नहीं है। के. पी. नारायणन के अनुसार – समाचार किसी सामयिक घटना का, महत्वपूर्ण तथ्यों का परिशुद्ध तथा निष्पक्ष विवरण होता है, जिससे उस समाचार पत्र में पाठकों की रुचि होती है जो इस विवरण को प्रकाशित करता है।

पत्रकार नंदकिशोर त्रिखा का कहना है कि – समाचार को सदैव नया, दिलचस्प, मनोरंजक और महत्वपूर्ण होना चाहिए। जेराल्ड डब्ल्यू. जानसन की राय में – समाचार वह है जिसे प्रस्तुत करते समय कर्ता का कोई आर्थिक लाभ तो न होता है, परंतु जिसके संपादन से ही उसकी व्यावसायिक कुशलता का पूरा – पूरा पता चलता हो। श्रेष्ठ समाचार की परिभाषा यद्यपि यही है, तथापि साधारण व्यवहार में समाचार वे हैं जो अखबार में छपते हैं और अखबार वे हैं जिन्हें समाचार पत्र में काम करने वाले पत्रकार तैयार करते हैं। नार्थ क्लिफ के अनुसार – समाचार सामान्य से परे की कोई बात है। मेरी मान्यता है कि हम जिस समाज अथवा राज्य, राष्ट्र में रहते हैं, उसके प्रशासक, नेता या अगुआ जो कहतदे – करते हैं, वह भी समाचार है। हमको प्रभावित करने वाले आर्थिक, राजनीतिक, आपराधिक, कानूनी, भौगोलिक आदि सभी विषयों की हलचलें समाचार हैं।

दूसरे शब्दों में, देश-विदेश में सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक, आर्थिक आदि क्षेत्रों में घटित किसी सामयिक, विशिष्ट नवीन व महत्वपूर्ण घटना की रिपोर्ट या उससे संबंधित तथ्यों की निष्पक्ष, प्रमाणिक जानकारी, बहुसंख्यकों की अधिकतम रुचि हो, समाचार है।

समाचार क्यों?

समाचार क्या है? जान लेने के बाद इस बात पर विचार करना बहुत जरूरी है कि आखिर समाचार क्यों? वास्तव में हर व्यक्ति के भीतर कुछ नया जानने की ललक होती है। यह ललक जो पता है उससे कहीं अधिक पता लगाने की चेष्टा को जन्म देती है। व्यक्ति की इसी ललक और चेष्टा की पूर्ति का सबसे प्रमुख साधन बनते हैं समाचार। सच यह है कि समाचार का सीधा सम्बंध हर जन के जानने की ललक की पूर्ति से जुड़ा हुआ है। कहा यह भी जा सकता है कि किसी जनतांत्रिक व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिये हर जन के जानने के अधिकारों को सार्थक ढंग से अमल में लाने का काम समाचार ही करता है।

दूसरी ओर यदि जनतंत्र को जनता द्वारा, जनता के लिये, जनता का शासन मानें तो जरूरी है कि जनता द्वारा चुनी हुई सत्ता, जनता के जीवन संदर्भों यानी आजीविका और मौलिक अधिकारों के लिये क्या-क्या निर्णय ले रही है? इन निर्णयों पर किस-किस तरह अमल किया जा रहा है? अगर नहीं किया जा रहा है तो क्यों? आदि जिज्ञासाओं से जुड़ी सूचनाओं की जानकारी सामान्य् जन को होनी चाहिए। कम शब्दों में कहा जाए तो आम आदमी के जानने के अधिकार या यूं कहें सूचना की स्वतंत्रता अब के दिनों में जनतंत्र की पहली शर्त बन गयी है।

यह एक बहुत बड़ा सच है कि जिस देश की जनता को सही और विश्वसनीय सूचनाएं नहीं मिल पातीं, उस देश की जनता में हमेशा असुरक्षा की भावना घर कर जाती है। वास्तव में ऐसे देश के लोगों को पूरी तरह आजाद भी नहीं माना जा सकता।

पत्रकारिता के संदर्भ में जानने के अधिकार की बात को उठाते समय लोग यह प्रश्न जरूर उठाते हैं कि आखिर जानने का अधिकार क्यों? क्या ये अधिकार शासन-प्रशासन में फैले भ्रष्टाचार पर रोकथाम के लिये है? क्या ये अधिकार शासन-प्रशासन को देश के नागिरकों की जरूरतों, उनके अधिकारों व उनकी आजादी के प्रति अधिक जवाबदेह बनाने के लिये है? क्या ये अधिकार जनतंत्र की मजबूती के लिये जरूरी है? ऐसे ही कई और भी प्रश्न।

सच भी यह है कि जानने का अधिकार किसी देश व समाज के लोगों के मौलिक अधिकारों के बढकर है। यह भी कहा जा सकता है कि मौलिक अधिकारों को बचाने के लिये जानने के अधिकारों का होना बहुत जरूरी है। आज जबकि दिख रहा है सब कुछ की तर्ज पर बाजार पनप रहा है व सामाजिक ताना – बाना संवारा जा रहा है, तब यह और भी जरूरी हो जाता है कि जानने का अधिकार और अधिक मजबूत हो। इस जरूरत को पूरा करने में यदि कोई महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं तो वे समाचार पत्र और चैनल ही हैं।

समाचार की पहचान

मनुष्य के आचार-व्यवहार, पसंद-नापसंद, रुचि-अभिरुचि आदि समाज, वातावरण, स्थिति, परिस्थिति और जरूरत के हिसाब से बदलते रहते हैं। उसकी पसंद बहुत ही व्यापक और परिवर्तनशील होती है, फिर भी उसकी एक पसंद ऐसी है, जो अपरिवर्तनीय, शाश्वत और अटल है। और वह है अपने आस-पास, देश-विदेश में घट रही घटनाओं के बारे में जानने की उसकी तीव्र इच्छा। मनुष्य की इस इच्छा को पूरा करने के माध्यम आधुनिक से आधुनिकतम होते रहे हैं, लेकिन इतिहास गवाह है कि उसकी यह इच्छा कम से कमचर होने की बजाय तीव्र से तीव्रतर होती जी रही है। आजकल मनुष्य की इस इच्छा को पूरा करने का प्रयास समाचार पत्र पूरे जोर-शोर से कर रहे हैं। कई प्रकार के दैनिक, साप्ताहिक, पाक्षिक, मासिक समाचार पत्र प्रकाशित हो रहे हैं जो राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक, वैज्ञानिक आदि कई विषयों को केन्द्र बिंदु बनाकर प्रकाशित होते हैं। इन सभी समाचार पत्रों में प्रकाशित समाचारों में बुनियादी तत्व मौजूद होते हैं, जो किसी भी समाचार को महत्व देने में विशेष योगदान देते हैं, जो पाठकों की सामान्य समाचार ग्राह्यता पर आधारित होते हैं और पाठकों की रुचि, आस्था, चेतना व स्वभाव को सीधे प्रभावित करते हैं तथा उसे बहुत गहरायी तक उद्वेलित कर कुछ करने के लिये प्रेरित करते हैं।

एक संवाददाता के लिये यह भी समझना बहुत जरूरी है कि समाचार पत्रों के पाठकों या समाचार चैनलों के दर्शक प्रत्येक दिन ऐसा कुछ पढना या देखना चाहते हैं, जो बीते हुए कल की अपेक्षा कुछ नया हो, उनकी रुचि के अनुरूप हो या वह सब कुछ बताने में समर्थ हो, जो उसके आस-पास के परिवेश में घट रहा है। संवाददाता जब तक अपने भीतर ऐसी क्षमता विकसित नहीं कर लेता कि समाचार की सही पहचान कर सके, तब तक वह अपने पाठकों या फिर दशर्कों के बीच अपनी पहचान नहीं बना सकता।

समाचारों की सबही पहचान यानी न्यूज जजमेंट के लिये जरूरी है कि उन तत्वों को अच्छी तरह से समझ लिया जाए, जो किसी घटना, स्थिति, बयान, निर्णय, आदेश, व्यक्ति या उपलब्धि आदि को समाचार बनाते हैं। ये तत्व निम्नलिखित हैं-

१. प्रभाव

२. बात का वजन

३. विवाद

४. विषमता

५. नूतनता

६. सत्यता और यथार्थता

७. निकटता या समीपता

८. आत्मीयता

९. उपयोगिता

१०. विचित्रता

११. वैयक्तिकता

१२. एकात्मता

१३. सुरुचिपूर्णता

१४. परिवर्तनशीलता

१५. रहस्यपूर्णता

१६. महत्वशीलता

१७. भिन्नता

१८. संक्षिप्तता

१९. स्पष्टवादिता

२०. आकार और संख्या

२१. समीक्षात्मकता

२२. प्रतिफल

१. प्रभाव

संवाददाता को हमेशा यह ध्यान में रखना होता है कि कौन – कौन से समाचार उसके पाठक समूह या आम आदमी के बहुत बड़े हिस्से को प्रभावित कर सकते हैं या फिर उससे सीधे – सीधे जुड़े होते हैं। कओई बार एक ही समाचार में कई – कई बातें ऐसी होती हैं, जो आम आदमी को सीधे प्रभावित करती हैं या उनकी सीधा जुड़ाव होता है। ऐसी स्थितियों में यह देखना जरूरी हो जाता है कि कौन सी बात व्यापकता के साथ जनमानस के बहुत बड़े हिस्से को प्रभावित कर रही है। इसी बात को ऊपर रखकर समाचार की संरचना की जाती है।

उदाहरण के लिये नगर पालिका या नगर निगम की बैठक में सदस्यों द्वारा गृहकर बढाने और शहर में एक हर सुविधा से सुसज्जित अनाथालय बनाने का निर्णय लिया जाता है। मानवीय संवेदनाओं को सर्वोपरि रखा जाए तो निश्चित ही अनाथालय बनाने का निर्णय महत्वपूर्ण लगता है और यह नगरवासियों के लिये एक नया समाचार भी हो सकती है, लेकिन गृहकर बढाने का निर्णय नगर के लगभग सभी निवासियों से जु़ड़ा है और उन्हें प्रभावित करने जा रहा है। इसलिये गृहकर बढने का समाचार प्रमुखता से देना होगा।

२. बात का वजन

समाचारों को प्रस्तुति देते समय यह देखना जरूरी हो जाता है कि किसी समाचार में कितना वजन है और वह उसकी तरह के अन्य समाचारों से किस तरह महत्वपूर्ण है। वजन की बात समझने के लिये संवाददाता को अपने विवेक का इस्तेमाल करना पड़ता है और यह विवेक उसके अनुभवों से प्रभावित होता है।

उदाहरण के लिये हत्याओं के समाचार में लूट के समाचार से अधिक वजन है और लूट के समाचार में छीना-झपटी के समाचार से अधिक वजन है। कई बार समाचारों का वजन इस आधार पर तय करना पड़ता है कि वह समाचार, जिस क्षेत्र में प्रकाशित या प्रसारित हो रहा है, उस क्षेत्र का सामाजिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक, प्राकृतिक और आपराधिक ताना-बाना किस प्रकार का रहा है और रहेगा। स्थानीयता के आधार पर समाचारों को प्रस्तुत करके अपने समाचार पत्र या चैनल के लिये अधिक से अधिक पाठक व दर्शक तैयार किये जा सकते हैं।

३. विवाद

विवाद समाचारों का बहुत ही प्रिय शब्द रहा है। यदि किसी समाचार पत्र या चैनल पर प्रस्तुत होने वाले समाचारों पर ध्यान दें तो अधिकांश समाचार विवादों से उपजते दिखेंगे, विवाद लिये हुए होंगे या फिर विवाद को जन्म देते लगेंगे। आरोप – प्रत्यारोप, आंदोलन-समझौता, शिकायत-कार्यवाही, जांच-कार्रवाई, बैठक-बहिष्कार आदि सभी किसी न किसी विवाद से जुड़े होते हैं और समाचार को जन्म देते हैं। ऐसे समाचारों को प्रस्तुत करना इसलिये भी जरूरी रहता है कि इनसे समाज के कई वर्गों का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जुड़ाव होता है।

४. विषमता

चार्ल्स डाना ने १८८२ में समाचार को परिभाषित करते हुए कहा था कि आदमी को कुत्ता काट ले तो यह सामान्य सी बात है, समाचार तो तब बनता है, जब आदमी कुत्ते को काट ले। कई मझे हुए पत्रकरों की धारणा रहती है कि जनता हैरान होने या चौंकने का पूरा आनन्द उठाती है। इसलिये कहीं कोई विषमता या फिर असामान्य दिखाई दे, तो उसे समाचार बनाने से नहीं चूकना चाहिए। संवाददाता अगर विषमताओं और असमान्य की खोज पर निकले तो उसे कुछ न कुछ मिल ही जाता है।

उदाहरण के लिये थानेदार के यहां चोरी का समाचार, जनता द्वारा शराबी पुलिस की जमकर धुनाई का समाचार, बहू द्वारा सास को जला डालने का समाचार, परीक्षा देते समय ही प्रसव पीड़ा उठने और बच्चा पैदा होने का समाचार, पुलिस संरक्षण में महिला से बलात्कार का समाचार आदि। वास्तव में समाज के हर पहलू से जुड़े तरह-तरह के विषयों में ऐसी विषमताएं मिल ही जाती हैं, जो समाचार का रूप ले सकती हैं। आवश्यकता है उन्हें परखने की क्षमता विकसित करने की।

५. नूतनता

पाठकों को असाधारण, नवीन, ताजा से ताजा समाचार आकर्षित करते हैं। समाचार प्रस्तुत करने में विलंब होने पर वे निस्तेज और निरर्थक हो जाते हैं। यही कारण है कि आकस्मिक रूप से घटित घटनाओं के समाचारों को समाचार पत्रों में अर्ध विकसित रूप में ही तुरंत ही दे दिया जाता है और बाद में समाचार संकलित कर उसे विकसित रूप में दिया जाता है।

६. सत्यता और यथार्थता

किसी घटना के यथार्थ, वास्तव्य और सत्य पर आधारित विश्लेषण, परीक्षण एवं पूर्वाग्रह या पक्षपातरहित परिशुद्ध एवं संतुलित विवरणों में स्पष्टता होती है, जो समाचार को मूल्यवान बनाती है और इन विवरणों पर दृढता, अटलता, दृढ प्रतिज्ञता और निश्चयात्मकता, जो समाज के हित में होती है, समाचार पत्र के हित अर्थात उसकी खपत बढाने में भी सहायक होती है।

७. निकटता या समीपता

पाठक के लिये निकटस्थ छोटी से छोटी घटना दूर बड़ी घटना से अधिक महत्वपूर्ण होती है। आत्मीय लगाव व अपनेपन के कारण वह अपनी निकटवर्ती या घनिष्ठ व्यक्ति, स्थान आदि से सम्बंधित घटना में अधिक रुचि लेता है, इसलिये जिस स्थान का समाचार दिया जा रहा हो और जिस स्थान पर समाचार पत्र प्रकाशित हो रहा हो उसमें भौगोलिक निकटता का विशेष ध्यान रखा जाता है।

८. आत्मीयता

आत्मीयता अंतस्थ सहानुभूति को खोलती है और पाठकों को समाचारों से जोड़ती है। मानवीय गुणों जैसे – प्रेम, ईर्ष्या, दया, सहानुभूति, त्याग, भय, आतंक, घृणा, हर्ष से संबंधित समाचार आत्मीय होने के कारण पाठकों को विशेष रूप से आकर्षित करते हैं।

९. उपयोगिता

जन-सामान्य के रहन – सहन, उनकी दिनचर्या, जीवनचर्या, लोक-व्यवहार, उद्योग व्यवसाय में आवश्यक, लाभदायक, सहयोगी व उपयोगी सभी सूचनाएं व जानकारियां समाचार पत्र की उपयोगिता को बढाती हैं, जो कि पाठकों को समाचार पत्र खरीदने के लिये बाध्य करती हैं।

१०. विचित्रता

मनुष्य की वृत्ति सदा ही जिज्ञासु रही है। संशय और रहस्य से पूर्ण समाचार पाठकों को आकर्षित करने के साथ उनकी जिज्ञासा को भी शांत करते हैं।

समाचार के साथ समाचार प्रस्तुत करने का अनोखापन, सुंदर ढंग पाठकों का मनोरंजन करने के साथ असाधारण सौंदर्यानुभूति व आनंदानुभूति कराते हैं।

११. वैयक्तिकता

आम और खास व्यक्ति के आधार पर समाचार भी विशेष और गौण महत्व रखते हैं। किसी विशेष व्यक्ति द्वारा किया गया साधारण काम और किसी सामान्य व्यक्ति द्वारा किया गया विशेष काम या अप्रत्याशित उपलब्धि समाचार बन जाती है। इन समाचारों में साधारण – विशेष, अमीर – गरीब, छोटे-बड़े सभी पाठक अपना बिम्ब देखते हैं, इसीलिये इसे समाचार तत्व प्राप्त होता है।

१२. एकात्मता

एकता, अखण्डता, समानता, अभिन्नता हमारे देश, समाज और समुदाय की आत्मा है। ये हमारे आदर्श व जीवनमूल्य हैं। ये हमारे मन में एकत्व का भाव जगाते हैं। इनका अनुभव भौगोलिक सीमा के बाहर भी होता है इसलिये समाचार पत्रों में देश, समाज व धर्म से जुड़े इन आधारों को भी महत्व दिया जाता है।

१३. सुरुचिपूर्णता

पाठकों की रुचि को प्रभावित करने वाले समाचार अधिक पठनीय होते हैं। प्रत्येक पाठक की समाचार में रुचि उसकी शिक्षा, सामाजिक वातावरण, समाज में स्थिति, उद्योग-व्यवसाय, उम्र आदि पर निर्भर करती है। फिर भी, आम चुनाव, प्राकृतिक आपदा, वैज्ञानिक अविष्कार, दंगे, खेल आदि से संबंधित समाचारों में सभी की रुचि होती है।

१४. परिवर्तनशीलता

मनुष्य परिवर्तनशील प्राणी है। उसकी इच्छा-अनिच्छा, पसंद-नापसंद, रुचि-अभिरुचि सदा परिवर्तित होती रहती है। इस कारण समाज या व्यक्ति के कार्य में भी परिवर्तन होता रहता है। यही कारण है कि सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक आदि परिवर्तनों के सामयिक समाचार पाठकों का ध्यान खींचते हैं।

१५. रहस्यपूर्णता

मानवजीवन रहस्यों के पूर्ण है। मानव स्वाभाव है कि उसके मन में हर पल, क्या, कहां, क्यों, कब, कैसे, किसने जैसे प्रश्न उठते रहते हैं। इन प्रश्नों के उत्तर के साथ गुप्त भेदों, गोपनीय विषयों के राज खुलते जाते हैं और पाठक को मानसिक संतुष्टि प्राप्त होती है।

१६. महत्वशीलता

यदि किसी घटना का परिणाम राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, व्यापारिक, साहित्यिक व सांस्कृतिक क्षेत्र में बहुत बड़ा परिवर्तन लाने वाला हो तब भी वह समाचार पाठकों के लिये अधिक महत्वपूर्ण होता है।

१७. भिन्नता

बहुधा एक ही तरह के समाचार एकरूपता के कारण पाठक को आकर्षित नहीं कर पाते। भिन्न – भिन्न तरह के तथा अलग – अलग ढंग से प्रस्तुत समाचार पाठकों को अधिक आकर्षित और प्रभावित करते हैं।

१८. संक्षिप्तता

आज की जिंदगी भाग-दौड़ की और तेज जिंदगी है। आज हर व्यक्ति अपने में, अपनी जिंदगी में और अपने घर-परिवार में व्यस्त है। उसके पास बड़े – बड़े व लम्बे समाचारों को पढने के लिये अतिरिक्त या खाली समय नहीं है इसलिये उचित, आवश्यक व योग्य समाचारों के साथ ही सरल, सुंदर, सही, लचीली, धारदार, रोचक भाषा शैली में दिये गये समाचारों का अपना महत्व होता है, जो कि समाचार का एक मुख्य तत्व है।

१९. स्पष्टवादिता

तथ्यों व जानकारियों के साथ विचारों और प्रस्तुतिकरण में स्पष्टवादिता का भी विशेष महत्व होता है, क्योंकि स्पष्टवादिता ही पाठकों में समाचारों के प्रति विश्वास पैदा करती है।

२०. आकार और संख्या

आकार और संख्या के आधार पर भी किसी घटना का समाचार मूल्य आंका जाता है। विमान या रेल दुर्घटना, प्राकृतिक आपदा-बाढ, अकाल, महामारी आदि तथा दंगे में अधिक संख्या में मृत और घायल यात्रियों, लोगों से सम्बद्ध समाचारों को अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है, जबकि कम लोगों या यात्रियों की मौत के समाचार समाचार की दृष्टि से अपेक्षतया गौण होते हैं।

२१. समीक्षात्मकता

समाचार समीक्षा करने योग्य या समीक्ष्य हों तो पाठकों को उसका ठीक-ठीक मूल्यांकन करने, दृढता से प्रमाणित करने तथा अपनी राय या सम्मति प्रकट करने का अवसर मिलता है। यही कारण है कि समीक्षात्मकता समाचार का आवश्यक तत्व है।

२२. प्रतिफल

संवाददाता की यह जिम्मेदारी होती है कि वह पिछली घटनाओं, भुक्तभोगियों व विषय विशेषज्ञों की राय और अपने आकलन का सहारा लेकर अपने पाठकों व दर्शकों को किसी सूचना, स्थिति या घटना के प्रभाव, परिणाम या प्रतिफल के प्रति भी सचेत करता चले। सच्चाई यह है कि हर कोई यह जानना चाहता है कि अब क्या होगा? इससे क्या प्रभाव पड़ेगा? इससे बचा कैसे जाए? आदि – आदि। इसलिये लोगोंके साथ अपने समाचार पत्र या चैनल का सीधा सम्बंध बनाने के लिये यह जरूरी है कि संवाददाता सूचनाओं, स्थितियों व घटनाओं का विधिवत आकलन करे और विश्वसनीय तरीके से लोगों को आगे आने वाले समय के लिये जागरुक करे।

अंत में

समाचारों की पहचान में स्थानीयता का पुट होना बहुत जरूरी है। यह तय होना जरूरी है कि इस समाचार के पाठक या दर्शक किस परिवेश, किस भाषा, किस संस्कृति और किस रुचि के हैं। यदि इन चार जरूरी स्थानीय तत्वों को नजरअंदाज कर दिया गया तो यह निश्चित है कि समाचार और समाचार प्रस्तुत करने वाला संवाददाता अपने पाठकों और दर्शकों के बीच पैठ नहीं बना सकेगा। यह न केवल समाचार पत्र चैनल के लिये बल्कि समाचार एकत्र करने वाले संवाददाताओं के लिये घातक होता है। बहुत बार देखा जाता है कि जिस संवाददाता की पैठ अपने पाठकों और दर्शकों के बीच होती है, उसे समाचारों का टोटा कभी नहीं होता है। ऐसा इसलिये होता है कि उसके पाठक या दर्शक स्वयं में उसमें प्रचारक, प्रसारक व पोषक की तरह काम करने लगते हैं।

आन डिमांड सर्विस के इस समय में किसी संवाददाता के लिये यह जान लेना जरूरी होता है कि उसे जिस क्षेत्र में कार्य करना है, वहां के लोगों का परिवेश, संस्कृति, भाषा और रुचि किस तरह की है। इन चार स्थानीय तत्वों को जान लेने के बाद यह समझ लेना आसान हो जाता है कि जिस क्षेत्र में संवाददाता को काम करना है, वहां के लोगों की समाचारों से कैसी आशायें हैं यानी उनकी न्यूज डिमांड क्या है।